आज यानि कि 1 जून, 2016 का दिन काफी गहमागहमी में चल रहा है. हर कोई सेस के बारे में बात कर रहा है. कारण है कि आज की तारीख से सभी प्रकार की सेवाओं पर पहले से चलते आ रहे सेवा कर में एक अतिरिक्त कर यानि कि टैक्स जोड़ दिया गया है. इस नए तरह के अधिभार को नाम दिया गया है 'कृषि कल्याण सेस'.
कृषि कल्याण सेस - नाम सुनने से ही मन पावन पावन हो गया. बस ऐसा लग रहा है कि अभी जब मैं अपने मोबाइल का बढ़ा हुआ बिल जमा करूँगा तो उससे किसानों की आत्महत्या रुक जाएगी. ठीक वैसे ही जैसे लगभग छह महीने पहले इसी सरकार द्वारा लगाये हुए 'स्वच्छ भारत सेस' से मेरा देश पूरा स्वच्छ हो गया (मजाक है, क्यूंकि सब मजाक बन कर रह गया है).
आखिर क्या कारण है कि स्वच्छ भारत सेस लगाने के समय पर जो लोग चुप रहे, वो भी अब अपनी आवाज मुखर करने लगे हैं? क्यूँ लोग किसानों का भला होने का अंदाजा देने वाले इस अधिभार पर विरोध के स्वर प्रकट कर रहे हैं?
इसका कारण है वर्तमान सरकार द्वारा देश को दिए गए भाषणों में सरकारी प्रगति की ऊंची ऊंची कहानियां सुनाना और उसके बावजूद भी बढती महंगाई से कोई राहत न दिलाते हुए रोज नए नए टैक्स बढ़ाना. 'स्वच्छ भारत सेस' के नाम से बटोरे गए धन का क्या उपयोग हुआ है, कहाँ गया ये पैसा, इन सवालों के जवाब जनता ढूंढ तो रही है लेकिन लगता है कि ये जवाब सर्फ एक्सेल से धुलकर गायब हो गए हैं. ढूंढते रह जाओगे वाला डायलॉग रह रह कर मन को कचोट जाता है.
देश में पिछले दो सालों में किसानों की हुई बदहाली और उनकी बढती आत्महत्याओं पर जब सरकार को घेरा जाने लगा है तो सरकार ने इसमें भी अपनी कमाई का जरिया निकाल लिया. अब कोई इस नए अधिभार का विरोध करे तो उसे किसान विरोधी घोषित कर दिया जायेगा. चित्त भी मेरी और पट भी मेरी. वाह जी वाह.
चलिए अब ये नया अधिभार लगाया है तो इसके पीछे कोई योजना तो होनी चाहिए थी किसानों की समृद्धि के लिए. फिर भी, अगर केंद्र सरकार अगले महीने से किसानों की होने वाली आत्महत्याओं पर रोक लगवा सके तो समझा जा सकता है कि हमारे पैसे से कुछ अच्छा काम हो गया. मुश्किल सिर्फ यही है कि इस सरकार ने पिछले 'स्वच्छ भारत सेस' से जनता को कोई भी ऐसा भरोसा दिलाया नहीं है.
सेस के बारे में सोचते सोचते मुझे ये प्रश्न मन में कौंधा कि आखिर क्या कारण है कि भाजपा की वर्तमान सरकार को बार बार जनता पर नए नए टैक्स लगाने पर मजबूर होना पड़ रहा है? जब इस सरकार से सवाल पूछे जाते हैं तो आंकड़ों को इधर का उधर करके ये बता देते हैं कि देश की जीडीपी में अंधाधुंध वृद्धि हो गयी है. वो आंकड़े सुनते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है. लेकिन जैसे ही वास्तविकता में अपने महीने का बढ़ा हुआ बजट और घटती हुई कमाई पर नज़र पड़ती है तो सारी ख़ुशी तुरंत उड़न-छू हो जाती है. दो साल पहले जब ये सरकार सत्ता में आई थी उस समय सेवा कर 12.5% था और आज की तारीख में ये बढ़कर 15% हो गया है. अगर इस देश की जीडीपी पिछले दो साल में इतनी ही तेजी से आगे बढ़ रही है तो फिर जनता पर 2.5% का अतिरिक्त टैक्स क्यूँ?
तब मुझे समझ में आया कि असल में इस सरकार के कार्यकाल में लोगों की कमाई घट गयी है, व्यापार में कमी आ रही है, और वास्तव में जीडीपी में कमी आ रही है, जिस वजह से सरकार को अपने कार्यकलापों को जारी रखने के लिए जरुरी धन की आपूर्ति इस तरह के अतिरिक्त टैक्स लगाकर करी जा रही है. सीधा सा गणित है कि अगर लोगों की कमाई बढ़ी होती तो अपने आप ही सरकार के पास उतने ही टैक्स में ज्यादा धन जमा होता लेकिन लोगों की कमाई कम होने के कारण ही सरकार को अपने खर्चों के लिए लोगों पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ डालने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
देश के प्रधानमंत्री होने के नाते, मोदी जी का ये कर्तव्य है कि टैक्स देने वाली जनता पर इतना अधिक कर-भार डालने के बाद उन्हें अपने कामों में जल्दी ही परिणाम दिखाने चाहिए जो पिछले दो सालों में नदारद हैं. वर्ना तो जनता जनार्दन अगले चुनावों में आपको आपका रिजल्ट थमा ही देगी.
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