Friday, June 20, 2008

परमाणु करार की आफत


मास्टरजी: बच्चों, ये है हमारी सरकार की बनावट। अरे मनमोहन! तुम्हारी सरकार तो डावांडोल लग रही है?
मनमोहन: क्यूँ हो मास्टरजी? मैं रोज रोज वाम-दलों से पंगे लेना जो पसंद करता हूँ।



ये कोई चुटकुला नही, इस देश की वर्तमान स्थिति है। जहाँ हमारे देश की सरकार अमेरिका के साथ परमाणु करार करने पर अडिग है, सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वाम-दल इस करार के पूर्णतया विरोध मे हैं। कुछ दिन पहले पढने को मिला था कि अब कांग्रेस भाजपा से इस करार को अमली जामा पहनाने के लिए समर्थन मांग रही है। सोचने की बात है कि जब सरकार इस करार पर शुरू मे हस्ताक्षर कर रही थी, तब उस समय उसने विपक्ष को विश्वास मे लेने की जहमत नही उठाई। अब जब करार के लिए नौबत गले गले गई है, तब उसे सबकी याद रही है।



वाम-दलों की तो बात ही क्या करनी, उन्हें तो हर बात का ही विरोध करने की आदत है, बल्कि यूँ कहा जाए कि उनकी राजनीति ही पूर्ण रूप से विरोध पर टिकी है। अमेरिका के धुर-विरोधी माने जाने वाले वाम-दलों ने सरकार को चेतावनी दी हुई है कि आप करार पर एक कदम आगे बढाओ, हम आपके पैर काटने को तैयार हैं। लेकिन इस पूरे प्रकरण पर गौर किया जाए तो ख़ुद संप्रग सरकार कितनी विवेकहीन है, ये पता चलता है। वैसे तो विदेश से जुड़े मसलों पर पूरी संसद को विश्वास मे लेना जरूरी था, वो तो नही ही किया, पर कम से कम जिनके समर्थन से सरकार चला रहे हो, उन्हें तो पूरी बात पता चलनी चाहिए थी। इस पूरे प्रकरण से हमारे इस महान देश की साख को बट्टा लग रहा है।



अब कांग्रेस का कहना है कि चाहे जो हो जाए, वो इस करार को कर के ही रहेंगे, इसके लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी का समर्थन हासिल करने की कवायद भी शुरू कर दी है। समझ मे ये नही आता कि जब इस देश मे महंगाई अपने चरम पर विराजमान हो रही है, इस सरकार को आख़िर परमाणु करार करने मे इतनी जल्दबाजी क्यूँ है? आज महंगाई अपने १३ वर्षों के चरम पर पहुँच गयी। आम आदमी के नाम पर केन्द्र मे पहुँची कांग्रेस-नीत सरकार आम आदमी की तरफ़ ही ध्यान नही दे रही है। किसानों को क़र्ज़-माफ़ी के नाम पर दिया गया धोखा क्या कम था? और तो और, अभी तक क़र्ज़-माफी के लिए आवंटित धन का निस्तारण कहाँ से किया जायेगा, यह प्रश्न भी अनुत्तरितहै। जाहिर है, कि उन्होंने सोच लिया है कि चुनावी वर्ष मे कुछ लोक-लुभावन घोषणाएं कर लो, और आर्थिक बोझ आने वाली सरकार के कन्धों पर डाल दो।



जहाँ अपने बजट मे वित्त मंत्री ने ३-४ सप्ताह मे ही महंगाई पर काबू करने की बात कही थी, वहीं अब वो सीना ठोंक कर कह रहे हैं कि इस महंगाई को बस मे करना किसी भी सरकार के बूते की बात नही थी। मेरा तो सिर्फ़ इतना ही कहना है कि जब आप कोई काम कर नही सकते तो उसे शुरू मे ही बोलने की जरूरत क्या थी। मैं सिर्फ़ इतना और कहना चाहूँगा कि जब सरकारों के बूते मे कुछ नही है तो क्यूँ हम इस देश को भगवान् भरोसे ही चलने दें।