केंद्र सरकार अपने 2 साल पूरे होने का ढोल तो पीट रही है लेकिन जनता की कोई भी भागीदारी इस पूरे कार्यक्रम में कहीं नहीं दिख रही. कारण साफ़ है कि जनता इस तरह के कार्यक्रम में भागीदारी तभी करती है जब उसे सरकार से सीधे तौर पर किसी तरह का कोई फायदा हुआ हो.
सरकार नगाड़े बजाकर कह रही है कि उसने रोजगार दे दिया लेकिन जब उन्ही का नेता सुब्रह्मनियन स्वामी आरबीआई गवर्नर को हटाने के लिए कहता है कि देश में रोजगार नहीं है, कंपनियां घाटे में जा रही हैं तो कोई भी सरकार का मंत्री उठकर ये नहीं कहता कि ये आदमी झूठ बोल रहा है क्यूंकि उसे झूठा साबित करने के लिए उन्हें आंकड़े दिखाने पड़ेंगे.
आज अखबार में पढ़ा कि केनरा बैंक को कुछ हज़ार करोड़ का घाटा हुआ है, कुछ दिन पहले पंजाब नेशनल बैंक ने भी ऐसा ही घाटा प्रकाशित किया था. सरकार ना तो ललित मोदी का कुछ बिगाड़ पाई ना विजय माल्या का.
टीवी पर देखा कि छाती पीट पीट कर मोदी जी कह रहे थे कि 2 साल में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लग पाया.
अरे मोदी जी! आरोप लगाने के लिए जांच करने वाली सभी संस्थाओं पर तो आप ताला लगाकर बैठे हो. आरटीआई का क्या हाल हो गया है आपके राज में, किसी से छुपा है क्या? आरटीआई के जवाब देने के बजाय बीजेपी प्रेस कांफ्रेंस कर देती है पर आरटीआई का जवाब नहीं देती.
वैसे भी आपकी सरकार ने कुछ काम किया हो तो ही लोग उसमे भ्रष्टाचार ढूंढ पाएंगे. काम के नाम पर आपने लोगों के 'जन-धन खाते' खुलवा दिए और बदले में गैस पे सब्सिडी धीरे धीरे ख़त्म कर दी, स्वच्छता के नारे दे दिए और बदले में स्वच्छ भारत टैक्स लगा दिया, किसानों की जमीन छीनने के लिए अधिग्रहण का अध्यादेश पे अध्यादेश लागू किया और जब जनता के भारी विरोध के कारण उसे वापस लेना पड़ा तो बदला लेने के लिए अब किसान के नाम से भी नया टैक्स चालू कर दिया.
दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें आधे से भी कम हो गयीं पर आपने टैक्स पे टैक्स लगाकर पेट्रोल, डीजल के दाम दुगने कर दिए. आप महंगाई कम करने का नारा देकर सरकार में आये थे लेकिन आपके कार्यकाल में खाने पीने की वस्तुओं के दाम दुगुने से भी अधिक हो गए फिर भी कभी ऐसा सुनाई भी नहीं दिया कि आपने बढती हुई महंगाई से चिंतित होकर वित्त मंत्री से वार्तालाप किया हो.
काले धन का शोर चुनाव से पहले तक हमारे कान के परदे फाड़ता था लेकिन सत्ता में पहुँचने के बाद से आपने काला धन शब्द का जिक्र करना ही बेमानी समझ लिया. एक बार अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में जरुर आपने इसका जिक्र किया लेकिन ये कहकर कि सरकार को पता ही नहीं है कि किसका और कितना काला धन विदेशों में जमा है. इससे पहले आप चुनावों में दुन्दुभी बजाकर कहते थे कि कुछ लोगों ने इतना काला धन विदेशों में जमा किया हुआ है कि उसको जब आप वापस लायेंगे तो हिंदुस्तान के एक-एक व्यक्ति को 15-15 लाख मिल जायेगा. चुनाव जीतने के बाद आप तो चुप्पी साध गए और आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसे एक जुमला घोषित कर दिया.
चलिए चुनावी जुमलों को छोड़ दिया जाये तो भी आपके घोषणापत्र की तो अहमियत कम नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन लगता है कि सत्ता लोलुपता में आपने और आपकी सरकार ने अपने ही घोषणापत्र को हाशिये पर धकेल दिया. न तो किसानों को उनकी फसल का उचित और लाभकारी मूल्य दिलवाने के लिए आपने कोई पहल करी बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में ये कह कर कि सरकार ऐसी कोई योजना नहीं लाना चाहती है, आपने अपनी मंशा भी प्रकट कर दी.
विदेश नीति पर आते हैं तो मोदी जी ने आते ही धुआंधार विदेश यात्रायें करके और विदेशों में रंगारंग कार्यक्रमों के बीच भाषणबाजी करके सबको सम्मोहित तो कर दिया लेकिन अपने ही पडोसी देशों से धीरे धीरे सम्बन्ध खराब कर लिए.
चीन के राष्ट्रपति के साथ झूले पर बैठ कर पींगे बढाते रहे लेकिन चीन उसके बाद भी सीमा पर हमें आँखें तरेरता रहता है.
अचानक से बिना बुलावे के पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ के जन्मदिन का केक खा आये बिना अपने देश को सूचित किये, और इसके बावजूद भी पाकिस्तान से जारी हमलों पर चुप्पी साध ली. पठानकोट पर हमला हुआ, ये हमला पाकिस्तान ने करा था, इसके बावजूद आपने पाकिस्तान की ही जांच एजेंसी को बुलाकर अपनी बेइज्जती करवाई. उन्होंने उल्टा हमारे ही देश पर खुद पर ही छद्म हमला कराने का घिनौना आरोप लगा दिया और आप चुप रहे. ये कैसी राष्ट्रभक्ति है? एक समय हमारा मित्र देश कहलाने वाला छोटा सा पडोसी देश नेपाल आज बात बात पर हमको घुड़की दे रहा है और चीन के साथ व्यापारिक समझौते कर रहा है, ये आखिरकार किसका नुकसान है? हमारे देश का ही तो.
रक्षा मामलों में देखें तो आपने फ़्रांस की पहली यात्रा में ही राफेल फाइटर जहाजों की खरीद के लिए समझौते कर दिए और इसे बहु-प्रचारित भी कर दिया. तब से एक साल से ऊपर बीत गया है. न तो जहाज आये न जहाजों के पुर्जे. सुनने में आया है कि ऐसे महंगे जहाज खरीदने से पहले आपने रक्षा विशेषज्ञों से बातचीत करना भी मुनासिब नहीं समझा था, और अब रक्षा मंत्री इन जहाजो की कीमत दोगुनी महंगी बताकर इसे कम करवाने का प्रयास कर रहे हैं.
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो इन दो सालों में मोदी सरकार ने कोई भी सराहनीय कार्य नहीं किया है. और जैसा कि खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने स्वीकार किया है कि पहले दो साल में नींव रखी गयी है और विकास के काम अब शुरू होंगे, तो मेरे हिसाब से अभी से 'विकास पर्व' मनाने का कोई औचित्य नहीं है.
पहले विकास कीजिये, उसके बाद 'विकास पर्व' मनाइए. तब जनता भी आपका साथ देगी.
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