Tuesday, April 29, 2008
फ़टाफ़ट क्रिकेट
एक ज़माना था, हम लोग छोटे छोटे बच्चे हुआ करते थे उस समय। दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण किया जाता था। सड़कें ऐसे लगती थीं कि जैसे इस शहर मे कोई रहता ही नही है। सभी लोग अपने अपने घरों मे, या जिनके घरों मे टीवी नही था, वो लोग पडोसियों के घरों मे बैठ के रामायण देखा करते थे।
कुछ कुछ यही मंजर अब फिर से देखने को मिलता है। कारण है क्रिकेट का नया स्वरूप। क्रिकेट जो कि पहले ५ दिनों का टेस्ट होता था, एक-दिवसीय बनने के बाद से काफ़ी प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन अभी हाल मे ही क्रिकेट ने टी-२० के रूप मे अपना नया अवतार लिया है। छोटा होने के कारण इसमे आक्रामकता भी काफ़ी है और मनोरंजन तो बस ऐसा कि पूछिए मत। सारे अभिनेता, अभिनेत्रियाँ और गायक, खेल से पहले ही दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर देते हैं। और अगर खेल मे किसी खिलाडी ने चौका, छक्का मारा या कोई खिलाड़ी आउट किया तो फिर लोगों की नज़रें मैदान पर कम और कम कपडों मे नाच रही लड़कियों पर ज्यादा होती है। यानि कि पूरा पैसा वसूल।
क्रिकेट के इस नए स्वरूप से अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वो हैं घर की स्त्रियाँ। पहले तो उन्होंने सोचा कि चलो अच्छा हुआ खेल का समय कम हो गया तो बाकी समय मे अपने रोने धोने के धारावाहिक देख सकेंगे, लेकिन ये क्या, यहाँ तो एक खेल खत्म होता है, दूसरा शुरू होता है। और प्रसारण का समय भी उनके नाटक के समय पर ही। रिमोट भी नही छीन सकते। अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी.......
कुछ भी कहिये, लेकिन इस फ़टाफ़ट क्रिकेट ने एक बार फिर से क्रिकेट की तरफ़ भीड़ को आकर्षित किया है। और जिस तरह से इसमे पैसा पानी की तरह बह रहा है, हर दंपत्ति चाह रहा होगा कि उसका लड़का भी बड़ा होकर खेल मे पैसा कमाए। ये उक्ति अब कहीं नही सुनाई देती कि "पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब।" वैसे भी आजकल किसी को नवाब बोल दो तो मारने को दौड़ पड़ेगा क्यूंकि नवाबों के शौक ऐसे ऐसे थे कि कोई भी सभ्य इंसान नवाब कहलाना पसंद नही करेगा.
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abey ooo... hum nawabon k baarey mey kya ulta seedha likha hai???
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