Sunday, April 13, 2008
तिब्बत मे सांस्कृतिक संहार
ओलंपिक खेलों की शुरुआत मे अब कुछ गिनती के ही दिन बचे हैं। यह तो सर्व-विदित ही है कि इस बार के ओलंपिक खेल चीन मे हो रहे हैं। फिर इस समय मे खेलों को छोड़कर तिब्बत की तरफ़ सबका ध्यान क्यों आकर्षित हुआ है? इसका कारण है चीन द्वारा तिब्बत मे किया गया नर-संहार। अपुष्ट गैर-सरकारी सूत्रों की माने तो कम से कम १५० तिब्बतियों को इस दमनचक्र मे मौत के घाट उतार दिया गया. तिब्बतवासी अगर अपनी स्वायत्तता चाहते हैं तो उनके ऐसा चाहने मे बुरा ही क्या है? वैसे भी तिब्बत कभी भी चीन का अभिन्न हिस्सा नही रहा है। लेकिन चीन अपनी गलती स्वीकारने के बजाय दलाई लामा के ख़िलाफ़ अनर्गल बयानबाजी कर रहा है। यह बात सर्वज्ञात है कि चीन दलाई लामा से वार्ता शुरू करने का कभी इच्छुक नही रहा, इसलिए आज की तारीख मे उसे ओलंपिक जैसे खेलों के विरोध का दंश झेलना पड़ रहा है। इस विरोध के बावजूद भी चीन ओलंपिक मशाल को तिब्बत के रास्ते ले जाने के लिए अड़ा हुआ है, और अपनी इस जिद के लिए वह नर-संहार करने से भी बाज़ नही आ रहा है.
सबसे अधिक तिब्बती शरणार्थी भारतवर्ष मे रहते हैं, ऐसे मे भारत सरकार को उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए थी, लेकिन कूटनीतिक कारणों से वह ऐसा नही कर सकती क्योंकि चीन के साथ मधुर सम्बन्ध बनाना भी इस समय देश की आवश्यकता है। लेकिन जरूरत है पश्चिम बंगाल सरकार पर ध्यान देने की। हाल ही मे वहाँ की वामपंथी सरकार ने तिब्बतियों को रैली करने की अनुमति देने से इनकार करके अपना चीन के प्रति झुकाव जगजाहिर किया है। भारत सरकार को चाहिए कि वह अपनी विदेश नीति को राज्य सरकारों के साथ साझा करे, अन्यथा बाद मे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हमारा देश हँसी का पात्र बनकर रह जाएगा।
वैसे भी जिस प्रकार से वाम-दलों ने भारत सरकार की परवाह किए बिना ही तिब्बत को चीन का हिस्सा बताया है, उससे इनकी हिमाकत का ही पता चलता है। वाम दल विगत ४ वर्षों से बिना जिम्मेदारी के ही सत्ता-सुख भोग रहे हैं। हर बात पर विरोध करना इनकी नैतिक जिम्मेदारी होती है। चाहे वह अमेरिका के साथ का असैन्य परमाणु करार हो या महंगाई का मुद्दा। हर बात पर ये संसद के अन्दर और बाहर चिल्लाते तो जरूर हैं पर कभी भी ऐसा प्रतीत नही हुआ कि इन्होने उसके लिए कुछ करना चाहा हो।
तिब्बत मे चीन द्वारा विदेशी पर्यवेक्षकों/ पत्रकारों पर पाबंदी लगाना वैश्विक समुदाय को चीन के विरोध मे ही खडा करेगा. चीन एक बड़ी शक्ति के रूप मे उभरा जरूर है, किंतु जब तक वह मानवीय मूल्यों, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और अन्य धर्मों का सम्मान करना नही सीखेगा, उसे सर्व-स्वीकारोक्ति नही मिलेगी और ओलंपिक खेलों की मशाल ऐसे ही बुझती रहेगी.
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Chinese genocide in Tibet continues
ReplyDeleteunabated for last fifty years.The
people around the world are
watching helplessly.West Bengal govt. is also a party to it by siding with chinese policies which is highly deplorable.In a democracy peaceful expression is
allowed and cpm led govt thinks
otherwise,which should be condemned by all.