
कल, यानि कि १ जुलाई, २००८ को डॉ पी वेणुगोपाल की देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान एम्स के निदेशक पद से सेवानिवृत्ति हो गई। एक हृदय-चिकित्सक के रूप मे अपने कार्यकाल मे उन्होंने देश का नाम रोशन किया है। यह बात दीगर है कि इसके लिए उन्हें कई बार काँटों भरी राह पर भी चलना पड़ा।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अम्बुमणि रामदास से आरक्षण के मुद्दे पर बढ़ा उनका टकराव इस हद तक पहुँच गया था कि सरकार ने उनको निदेशक पद से हटाने के लिए नए कानून तक बना डाले। लेकिन अंत मे जीत सत्य की ही हुई जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के उस कानून को गैर-कानूनी करार दिया और डॉ पी वेणुगोपाल की निदेशक पद पर दुबारा नियुक्ति हुई।
इस सारे मामले मे यह देखना दिलचस्प रहा कि किस प्रकार से पूरा चिकित्सक समूह अपने निदेशक के साथ खड़ा नज़र आया। पता नही क्यूँ स्वास्थ्य मंत्री ने यह सब देखते और जानते हुए भी सारी लड़ाई को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया और अपने साथ साथ केन्द्र सरकार को भी एक गैर-कानूनी कानून बनाने मे अपना भागीदार बना दिया।
डॉ पी वेणुगोपाल ने देश को अपनी सेवाएं ऐसे समय मे दी जब उनके सामने अपना चिकित्सालय खोलने जैसे कई और विकल्प थे। उनके साथ के चिकित्सक जिन्होंने विदेशों मे चिकित्सा अभ्यास करने को वरीयता दी, आज धनाढ्य वर्ग मे शामिल हैं, फिर भी डॉ पी वेणुगोपाल ने अपने देश मे ही रहकर यहाँ की जनता की मदद करने को हमेशा ही अपनी प्राथमिकता मे रखा। आज वे भले ही एम्स से सेवा-निवृत्त हो गए हैं, लेकिन उनका योगदान कभी नही भुलाया जा सकता। ऐसे महान व्यक्ति को मैं शत-शत नमन करता हूँ।
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